Tuesday 30 August 2011

यह दुनिया तुम्हारे हाथों पर टिकी है, गाय, बैल की सिंगों पर नहीं

‘वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार शंकर पुणताम्बेकर की एक लघु कथा हैं- ‘नाव चली जा रही थी। मझदार में नाविक ने कहा- नाव में बोझ ज्यादा है। कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा। नहीं तो नाव डूब जाएगी। अब कम हो जाए तो कौन हो जाए, कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे। जो जानते थे। उसके लिए भी परले जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग थे। डाक्टर, अफसर, वकील, व्यापारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता के अलावा एक आम आदमी भी। डाक्टर, वकील, व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं। उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया।

बोला मैं जब डूबने को हो जाता हूं तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूं। जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा-आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे। नेता ने कहा, नहीं-नहीं, ऐसा करना भारी भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मै देखता हूं उसे। मैं भाषण देता हूं। तुम लोग भी उसके साथ सुनो। नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र, देश, इतिहास, परम्परा की गाथा गाते हुए देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊंचा कर कहा, हम मर मिटेंगे लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे, नहीं डूबने देंगे, नहीं डूबने देंगे। सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा और, नाव डूबने से बच गई।’

यह कथा आज के संदर्भ में आम आदमी की करूण गाथा को चित्रित करती है। ऐसी ही तस्वीर आज कुछ हमारे देश की भी है। वह बचना चाहता है तो लोग उसे डुबाना चाहते हैं। आज आम आदमी की बात सभी करते हैं। नेता, मीडिया, व्यापारी सभी। आम आदमी न हो तो देश का काम ही नहीं चल सकता। आम आदमी के हित के बारे में सभी सोचते हैं। वह आम आदमी ही है जो देश की सरकार बनाता है, सरकार गिराता है। वही है जो फैक्ट्रियों में हाड़-तोड़ मेहनत करता है। वह भी है जो खेतों में अनाज पैदा करता है और देश के और लोगों को खिलाने के लिए अपनी उपज मंडियों में दे आता है। आम आदमी की महत्ता के बारे में सोचा जाए तो कोई भी ऐसा काम नहीं है जो बिना उसके संपन्न हो सके। आम आदमी न हो तो रईशों की रईशी रह सकती है, न अमीरों की अमीरी, न ही चल सकती है नेताओं की राजनीति। यानी कि देश का सब कुछ यदि ठीक-ठाक चल रहा है तो आम आदमी के मजबूत कंधों पर।

आम आदमी ही है जो सभी को शांति प्रदान करता है। वह तमाम समस्याओं की जड़ भी है और समाधान भी लेकिन इस आम आदमी की सच्ची तस्वीर कोई देखना ही नहीं चाहता। सत्ता के गलियारों में आम आदमी की खूब चर्चा होती है। सरकारों की तमाम योजनाएं आम आदमी के लिए बनती हैं। देश का बजट तैयार होता है तो उसमें सबसे ज्यादा यदि किसी का ध्यान रखा जाता है तो वह आम आदमी ही है। बजट ही उसके लिए बनता है। आम आदमी आज सबकी दुकानदारी चला रहा है। सबका टारगेट आम आदमी है, फिर भी वह किसी के टारगेट पर नहीं है। वह हर जगह छला जा रहा है। आम आदमी के मेहनती हाथों पर ही यह दुनिया टिकी हुई है।

तुर्की के प्रसिद्ध कवि नाजिम हिकमत की आम जनता को संबोधित एक कविता है- तुम्हारे हाथ और उनके झूठ। जिसमें कहा गया है कि यह दुनिया तुम्हारे हाथों पर टिकी है, गाय, बैल की सिंगों पर नहीं। इस संवेदनशील जनवादी कविता में आम आदमी की आशा और आकांक्षाओं को उसके श्रमिक हाथों की बुनियाद पर उकेरा गया है। इसी तरह मुंशी प्रेमचंद के घीसू और माधव तथा होरी के जिंदगी में आजादी के लंबे अर्से बाद भी सवेरा कहां आ पाया है। आम आदमी के प्रति संवेदनहीनता कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। आज जिनके कंधों पर यह जिम्मेदारी है, वे ही गैर जिम्मेदारी निभाते हुए जिम्मेदारी का आवरण ओढ़े सुख भोगते फिर रहे हैं। राजनीति में अनेक विसंगतियां दिखाई देती हैं। आम आदमी की बात करने वाले नेता उससे इतनी दूरी बनाकर रखते हैं, जहां से वह दिखाई तो देता है लेकिन उसकी आवाज वहां तक नहीं पहुंचती। इसके लिए अब मध्यस्थ की जरूरत पड़ने लगी है। इस मध्यस्थता ने ही आम आदमी को सबसे ज्यादा छला है। आम आदमी की बात करने वाले नेता के सामने ही उसके हितों की बलि चढ़ाई जा रही है। नाव से कूद जाने की परिस्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं।

आम आदमी के लिए जिस आदर्श की बात की जाती है, वे आदर्श ही खोखले और अनैतिक नजर आते हैं। ऐसे में उसके सामने समाज और देश की कैसी तस्वीर उभर सकती है। भरोसा यह है कि वही इन परिस्थितियों से उबारने में सक्षम है लेकिन वह विवश है गहरे पानी में कूद जाने को। देखा जाए तो आज जो कुछ चल रहा है, उसके पीछे आम आदमी की ताकत ही है। अस्पताल, कालेज, मंड़ी सब कुछ। भ्रष्टाचार, आतंक, गरीबी, भुखमरी जैसे अनेक थपेड़े उस पर रोज पड़ रहे हैं। आज वह इनसे खुद को टूटा हुआ महसूस करने लगा है इसी बीच एक आवाज आती है अन्ना हजारे की। उस आवाज में आम आदमी को अपनी आवाज सुनाई देती है तो वह उस आवाज में अपनी आवाज मिलाने बैठ जाता है। यह तारतम्य कब तक बना रहेगा, उसे भी नहीं पता।

बात मीडिया की करते हैं तो आम आदमी वहां भी छला जाता दिखाई देता है। वहां पहले भी आम आदमी की बात की जाती थी और आज भी। बस उसका नजरिया बदल गया है। जबसे मीडिया का नजरिया बदला है, तबसे आम आदमी भी उसे दूसरी नजर से देखने लगा है। अब मीडिया आम आदमी को एक बाजार के रूप में देखने लगा है। यह आम आदमी का अधुनातन रूप है। वह आज एक सवाल बन गया है। ऐसा सवाल जिसका हल भी वह खुद है। आम आदमी तो अर्से से नैया न डूबने देने की कोशिश में अपने को कुर्बान करता आ रहा है लेकिन जो समर्थ और खास लोग हैं, वे उस कुर्बानी को भी स्वा

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Tuesday 23 August 2011

अन्‍ना के अनशन को देख रामदेव को याद आये अपने घाव (ANKUR SHARMA)

समाजसेवी और गांधीवादी अन्‍ना हजारे के आंदोलन में समर्थकों का सैलाब देखकर योग गुरु बाबा रामदेव को अपने अनशन की याद आ गई। बाबा रामदेव ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनके अनशन के समय सरकार ने आंसू गैस के गोले और लाठियां बरपायी थी। बाबा रामदेव ने कहा कि यह सारी चीजें सरकार पर निर्भर है मगर उन सबके बाद भी बाबा रामदेव अन्‍ना हजारे के साथ है
news express
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Sunday 21 August 2011

अण्णा ने जगाई राष्ट्रभक्ति की अलख (Ankur Sharma)

 (लिमटी खरे)
इस साल तो गजब ही हो गया। स्वाधीनता दिवस बीत गया और आज भी राष्ट्र भक्ति के गीतों का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। वरना गणतंत्र दिवस, स्वाधीनता दिवस और गांधी जयंती पर ही सुनाई देते रहे हैं देशप्रेम के गाने। किशन बाबू राव का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए कम से कम उन्होंने आजादी के मतवालों को भूल चुकी इक्कीसवीं सदी की युवा पीढी को उससे रूबरू करवाने का प्रयास तो किया। आज रामलीला मैदान में देश प्रेम के गाने गूंज रहे हैं, जो पंद्रह दिनों तक लगातार बजने की उम्मीद है। युवाओं को सड़कों पर आते देख राजनैतिक दलों की घिघ्घी सी बंधी दिख रही है। सभी इस वोट बैंक को हथियाने पर आमदा दिख रहा है। देश प्रेम के इंजेक्शन अगर इसी तरह से लगते रहे तो इक्कीसवीं सदी में भारत की तस्वीर कुछ और ही नजर आएगी। गांधीवादी अण्णा के पहनावे को देखकर लगता है मानो इक्कीसवीं सदी में भारत को नई राह दिखाने वाला गांधी मिल गया है। फर्क महज इतना ही है कि उस वक्त महात्मा गांधी ने गोरे ब्रितानी विदेशियों के खिलाफ जेहाद छेड़ी थी, पर आज अण्णा की जेहाद अपनों से है।

लगभग दो दशकों से देश प्रेम और राष्ट्रभक्ति के मायने 15 अगस्त, 26 जनवरी और गांधी जयंती में तब्दील हो गए थे। देशवासी इन तीन दिनों में ही देश प्रेम की बात करते नजर आते। सूरज के सर पर आते ही देश भक्ति के गानों का स्थान पॉप साग्स ले लिया करते। लगभग दो दशकों बाद यह मौका नजर आ रहा है कि पंद्रह अगस्त बीतने के बाद भी लगातार ही देश भक्ति की अलख जगी हुई है। इसका श्रेय जाते है गांधीवादी विचारधारा के सच्चे अनुयायी किशन बाबूराव यानी अण्णा हजारे को। अण्णा ने अपने अंिहसक तरीके से देश को एक सूत्र में पिरो दिया है।

कितने जतन के बाद भारत देश में 15 अगस्त 1947 को आजादी का सूर्योदय हुआ था। देश को आजाद कराने, न जाने कितने मतवालों ने घरों घर जाकर देश प्रेम का जज्बा जगाया था। सब कुछ अब बीते जमाने की बातें होती जा रहीं हैं। आजादी के लिए जिम्मेदार देश देश के हर शहीद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की कुर्बानियां अब जिन किताबों में दर्ज हैं, वे कहीं पडी धूल खा रही हैं। विडम्बना तो देखिए आज देशप्रेम के ओतप्रोत गाने भी बलात अप्रसंगिक बना दिए गए हैं। महान विभूतियों के छायाचित्रों का स्थान सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार जैसे आईकान्स ने ले लिया है। देश प्रेम के गाने महज 15 अगस्त, 26 जनवरी और गांधी जयंती पर ही दिन भर और शहीद दिवस पर आधे दिन सुनने को मिला करते हैं।

गौरतलब होगा कि आजादी के पहले देशप्रेम के जज्बे को गानों में लिपिबद्ध कर उन्हें स्वरों में पिरोया गया था। इसके लिए आज की पीढी को हिन्दी सिनेमा का आभारी होना चाहिए, पर वस्तुतः एसा है नहीं। आज की युवा पीढी इस सत्य को नहीं जानती है कि देश प्रेम की भावना को व्यक्त करने वाले फिल्मी गीतों के रचियता एसे दौर से भी गुजरे हैं जब उन्हें ब्रितानी सरकार के कोप का भाजन होना पडा था।

देखा जाए तो देशप्रेम से ओतप्रोत गानों का लेखन 1940 के आसपास ही माना जाता है। उस दौर में बंधन, सिकंदर, किस्मत जैसे दर्जनों चलचित्र बने थे, जिनमें देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले गानों को खासा स्थान दिया गया था। मशहूर निदेशक ज्ञान मुखर्जी द्वारा निर्देशित बंधन फिल्म संभवतः पहली फिल्म थी जिसमें देशप्रेम की भावना को रूपहले पर्दे पर व्यक्त किया गया हो। इस फिल्म में जाने माने गीतकार प्रदीप (रामचंद्र द्विवेदी) के द्वारा लिखे गए सारे गाने लोकप्रिय हुए थे। कवि प्रदीप का देशप्रेम के गानों में जो योगदान था, उसे भुलाया नहीं जा सकता है।

इसके एक गीत ‘‘चल चल रे नौजवान‘‘ ने तो धूम मचा दी थी। इसके उपरांत रूपहले पर्दे पर देशप्रेम जगाने का सिलसिला आरंभ हो गया था। 1943 में बनी किस्मत फिल्म के प्रदीप के गीत ‘‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है‘‘ ने देशवासियों के मानस पटल पर देशप्रेम जबर्दस्त तरीके से जगाया था। लोगों के पागलपन का यह आलम था कि लोग इस फिल्म में यह गीत बारंबार सुनने की फरमाईश किया करते थे।

आलम यह था कि यह गीत फिल्म में दो बार सुनाया जाता था। उधर प्रदीप के क्रांतिकारी विचारों से भयाक्रांत ब्रितानी सरकार ने प्रदीप के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया, जिससे प्रदीप को कुछ दिनों तक भूमिगत तक होना पडा था। पचास से साठ के दशक में आजादी के उपरांत रूपहले पर्दे पर देशप्रेम जमकर बिका। उस वक्त इस तरह के चलचित्र बनाने में किसी को पकडे जाने का डर नहीं था, सो निर्माता निर्देशकों ने इस भावनाओं का जमकर दोहन किया।

दस दौर में फणी मजूमदार, चेतन आनन्द, सोहराब मोदी, ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे नामी गिरमी निर्माता निर्देशकों ने आनन्द मठ, लीजर, सिकंदरे आजम, जागृति जैसी फिल्मों का निर्माण किया जिसमें देशप्रेम से भरे गीतों को जबर्दस्त तरीके से उडेला गया था। 1962 में जब भारत और चीन युद्ध अपने चरम पर था, उस समय कवि प्रदीप द्वारा मेजर शैतान सिंह के अदम्य साहस, बहादुरी और बलिदान से प्रभावित हो एक गीत की रचना में व्यस्त थे, उस समय उनका लिखा गीत ‘‘ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख मंे भर लो पानी . . .‘‘ जब संगीतकार ए.रामचंद्रन के निर्देशन में एक प्रोग्राम में स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने सुनाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपने आंसू नहीं रोक सके थे।

इसी दौर में बनी हकीकत में कैफी आजमी के गानों ने कमाल कर दिया था। इसके गीत कर चले हम फिदा जाने तन साथियो को आज भी प्रोढ हो चुकी पीढी जब तब गुनगुनाती दिखती है। सत्तर से अस्सी के दशक में प्रेम पुजारी, ललकार, पुकार, देशप्रेमी, कर्मा, हिन्दुस्तान की कसम, वतन के रखवाले, फरिश्ते, प्रेम पुजारी, मेरी आवाज सुनो, क्रांति जैसी फिल्में बनीं जो देशप्रेम पर ही केंदित थीं।

वालीवुड में प्रेम धवन का नाम भी देशप्रेम को जगाने वाले गीतकारों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उनके लिखे गीत काबुली वाला के ए मेरे प्यारे वतन, शहीद का ए वतन, ए वतन तुझको मेरी कसम, मेरा रंग दे बसंती चोला, हम हिन्दुस्तानी का मशहूर गाना छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी, महान गायक मोहम्मद रफी ने देशप्रेम के अनेक गीतों में अपना स्वर दिया है। नया दौर के ये देश है वीर जवानों का, लीडर के वतन पर जो फिदा होगा, अमर वो नौजवां होगा, अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं . . ., आखें का उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता. . ., ललकार का आज गा लो मुस्करा लो, महफिलें सजा लो, देश प्रेमी का आपस में प्रेम करो मेरे देशप्रेमियों, आदि में रफी साहब ने लोगों के मन में आजादी के सही मायने भरने का प्रयास किया था।

गुजरे जमाने के मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का नाम आते ही देशप्रेम अपने आप जेहन में आ जाता है। मनोज कुमार को भारत कुमार के नाम से ही पहचाना जाने लगा था। मनोज कुमार की कमोबेश हर फिल्म में देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत गाने हुआ करते थे। शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, क्रांति जैसी फिल्में मनोज कुमार ने ही दी हैं।
अस्सी के दशक के उपरांत रूपहले पर्दे पर शिक्षा प्रद और देशप्रेम की भावनाओं से बनी फिल्मों का बाजार ठंडा होता गया। आज फूहडता और नग्नता प्रधान फिल्में ही वालीवुड की झोली से निकलकर आ रही हैं। आज की युवा पीढी और देशप्रेम या आजादी के मतवालों की प्रासंगिकता पर गहरा कटाक्ष कर बनी थी, लगे रहो मुन्ना भाई, इस फिल्म में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के बजाए शुष्क दिवस (इस दिन शराब बंदी होती है) के रूप में अधिक पहचाना जाता है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद भी न देश की सरकार चेती और न ही प्रदेशों की।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत सरकार और राज्यों की सरकारें भी आजादी के सही मायनों को आम जनता के मानस पटल से विस्मृत करने के मार्ग प्रशस्त कर रहीं हैं। देशप्रेम के गाने 26 जनवरी, 15 अगस्त के साथ ही 2 अक्टूबर को आधे दिन तक ही बजा करते हैं। कुल मिलाकर आज की युवा पीढी तो यह समझने का प्रयास ही नहीं कर रही है कि आजादी के मायने क्या हैं, दुख का विषय तो यह है कि देश के नीति निर्धारक भी उन्हें याद दिलाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं।

आज अण्णा हजारे को सलाम किया जाना चाहिए कि उन्होंने 74 साल की उम्र में वह कर दिखाया जो कोई भी सियासी दल नहीं कर सका। अण्णा के साथ कांधे से कांधा मिलाकर देशवासी चल रहे हैं, उनके निशाने पर है भ्रष्टाचार। सरकार जिस भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं कर पा रही है उसे समाप्त करने का बीड़ा उठाया है अण्णा हजारे ने। देश के निर्दयी, नपुंसक, निष्प्रभावी शासकों ने देश की जनता को तहे दिल से लूटा है। अपनी सुख सुविधाओं के लिए तबियत से खजाने को खाली किया है। वहीं दूसरी ओर गांधीवादी अण्णा के पहनावे को देखकर लगता है मानो इक्कीसवीं सदी में भारत को नई राह दिखाने वाला गांधी मिल गया है। फर्क महज इतना ही है कि उस वक्त महात्मा गांधी ने गोरे ब्रितानी विदेशियों के खिलाफ जेहाद छेड़ी थी, पर आज अण्णा की जेहाद अपनों से है।


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Saturday 20 August 2011

फाजिल्का के बढ़ परभावित गावँ खली करने के आदेश

फाजिल्का  के इंडो - पका बोर्डर के गावों बढ़  का खतरा, परशासन ने दिए गावँ खली करने के आदेश,
किश्ती चला  ADC   पहुंचे गावँ में 

अंकुर शर्मा 
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Thursday 18 August 2011

Today Join Manav Ekta Manch In support of Anna Hazare

Today Manav Ekta Manch is Going to do a candle march in support of Anna hazare For lokpal Bill
From-Head Office Near Allahabad Bank Gaushala Road
TO -Roaming Into the Market To Clock Tower
You Are Requested To Join It  If You Are True Indian .....


Monday 15 August 2011

नया जिला बनने से खुश हैं लोग

 हमारे प्रतिनिधि, अबोहर : फाजिल्का के जिला बनने से लोग काफी खुश हैं। लोगों का कहना है कि जिला मुख्यालय की दूरी कम होने से उनको काफी सुविधा मिलेगी। क्योंकि पहले 150 किलोमीटर दूर फिरोजपुर आने-जाने में उनका काफी समय बबार्द हो जाता था।

विभिन्न विभागों के कर्मचारियों और अधिकारियों का कहना है कि उन्हें मीटिंग आदि में भाग लेने के लिए महीने में कई बार फिरोजपुर जाना पड़ता था। इसके लिए सुबह घर से जल्दी निकलना पड़ता था। वापस आते-आते रात हो जाती थी। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि उन्हें कई बार जिला हैड क्वार्टर जाने पर किराया आदि भी नहीं मिलता था। रात के समय वापस आने पर टैक्सी करवानी पड़ती थी। जिससे काफी परेशानी होती थी। अब जब जिला मुख्यालय की दूरी मात्र तीस किलोमीटर रह गई है तो उनको काफी राहत मिलेगी।

इसके अलावा फाजिल्का के जिला बनने से स्कूली खिलाड़ी भी खुश हैं। खिलाड़ियों के अनुसार उन्हें जिला स्तर पर खेलने के लिए 150 किलोमीटर दूर फिरोजपुर जाना पड़ता था। अब नया जिला बनने से उनको राहत मिलेगी। प्रिंसिपल सुमित कालड़ा का कहना है कि इतनी दूर जाने से खिलाड़ियों खासकर लड़कियों को परेशानी होती थी। अब नया जिला बनने से खिलाड़ियों को भी राहत मिली है।


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अब भारत-पाक बार्डर खुलवाना मिशन : ज्याणी

जासं, फाजिल्का

परिवहन, तकनीकी शिक्षा व औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री एवं स्थानीय विधायक सुरजीत कुमार ज्याणी ने कहा कि उन्होंने चुनाव से पहले किए अपने सारे वादे पूरे कर दिए हैं, यहां तक कि फाजिल्का को जिला बनाने का वादा भी पूरा हो गया है। अब इस इलाके की उन्नति के लिए जरूरी भारत-पाकिस्तान बार्डर व्यापार के लिए खुलवाने की दशकों पुरानी मांग वह राज्य में गठबंधन के साथ केंद्र में एनडीए सरकार आने पर हर हाल में पूरी करवाएंगे। ज्याणी फाजिल्का को जिला बनवाने के बाद पहली बार यहां के सिटी गार्डन पैलेस में पत्रकारों से मुखातिब हुए।

उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले फाजिल्का को जिला बनाने का दावा उन्होंने अपना राजनीतिक करियर दांव पर लगाकर पूरा कर दिया है। अब वह कांग्रेसी नेता भी फाजिल्का को जिला बनाने के संघर्ष में साथ देने की बात कह श्रेय लेने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्होंने मरणव्रत पर बैठे होने के दौरान उनका हाल तक नहीं पूछा। मरणव्रत स्थल पर आए और नंबर बनाकर चलते बने। लेकिन जनता सब जानती है कि जिले के लिए किसने क्या कुर्बानी दी। अब फाजिल्का में क्या कमी है, पूछने पर ज्याणी ने कहा कि जिला बनने से विकास की राह खुली है, लेकिन विकास फाजिल्का सेक्टर स्थित भारत-पाक सीमा की सादकी बार्डर व्यापार के लिए खुलने पर ही संभव है। क्योंकि यहां कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं है। इसलिए बार्डर का खुलना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने अकाली सांसद शेर सिंह घुबाया से बात कर ली है कि वह संसद के शुरू होने वाले सत्र में इस मुद्दे को उठाएं। इसके अलावा वह खुद भी फाजिल्का से एक शिष्टमंडल को लेकर केंद्रीय नेताओं से मिलेंगे व उनसे पाकिस्तान सरकार के साथ पत्र व्यवहार शुरू करने की मांग करेंगे। उन्होंने फाजिल्का में उच्च शिक्षा के लिए नए डिग्री कालेज जिनमें लड़कियों का कालेज खोलने, यहां से चंडीगढ़ वाया पटियाला बस चलवाने का आश्वासन दिया। इस समय नगर परिषद अध्यक्ष अनिल सेठी, मार्केट कमेटी चेयरमैन अशोक जैरथ, गुरविंदर टिक्का, नवीन कवातड़ा व बलजीत सहोता भी मौजूद थे।


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Plans for digital library remain a distant dream in Fazilka

 Praful C. Nagpal
Fazilka, August 7

The ambitious plan to convert the library of the MR Government College into a digital library, a premier educational institute since the pre-partition days, remains unfulfilled so far. The building of the digital library has not been completed due to paucity of funds even when a sum of Rs 36 lakh had already been spent on the new building of the library.

At present, the library is being run in an old portion of the college building. The library has a total of 22144 books on record but it has no librarian for the past seven years since the retirement of the last incumbent.

Rakesh Saha, a restorer and Junior Lecturer Assistant (JLA) Chuni Lal, working on temporary basis from PTA funds, are managing the library, which has a transaction of around 400 books per day during the academic session. The books are stocked in five-decade-old cupboards. Some of the books are tattered. Recently updated books are seldom added to the library.

With the development of the latest information and technology techniques, the necessity of converting the library into a digital one was felt a long time back.

The University Grant Commission (UGC) in 2009 sanctioned the funds amounting to Rs 36 lakh for the construction of a new double-storeyed block for the digital library. However, due to the escalation of the cost of the project, the building was left incomplete about a year back. As per the contractor Manoj Kumar, the work related to steel railing, plinth protection, boundary wall, aluminum main gate, some electronic equipment, submersible pump motor, water cooler with RO system is yet to be carried out reportedly due to paucity of funds.

Eminent socialite and educationist Raj Kishore Kalra has demanded that requisite funds should be sanctioned to make the project operational. Executive Engineer, PWD, Prem Kumar said at least Rs 10 lakh is required for the completion of library and installation of electronic gadgets.

Hence, the library has still not been handed over to the college authorities. For this reason, the building has virtually become a place of merry making for some anti-social elements.

Tribhuvan Ram, officiating principal of the MR Government College, said the college officials want the library building to be completed soon and its control be assigned to them to ensure its proper functioning and maintenance.

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अबोहर-फाजिल्का के बीच कब चलेगी रेलगाड़ी

 रेलवे की तरफ से फाजिल्का-अबोहर रेल लाइन परियोजना लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन इसमें ओर देरी होने की संभावना बढ़ गई है, क्योंकि परियोजना के लिए बनाई गई रेल लाइन की अभी तक चैकिंग नहीं हुई और न ही इस पर रेल की स्पीड चैक हुई है। खास बात यह है इसके लिए अभी तक विभाग के लखनऊ स्थित सेफ्टी कमिश्नर ने अभी तक इसकी कोई तिथि घोषित नहीं की गई है, जबकि फिरोजपुर डिविजन की ओर से इस बारे में काफी समय पहले लिखा जा चुका है। इसकी पुष्टि सहायक डीआरएम सुधीर कुमार सिंह ने नार्दर्न रेलवे पैसेंजर्स समिति के पदाधिकारियों से की है। गौर हो कि इसका शिलान्यास एक फरवरी 2004 को तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने किया था।
ऊंचे होंगे प्लेटफार्म : समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अमर लाल बाघला, महासचिव एडवोकेट बाबू राम, सचिव पूर्ण सिंह सेठी, उपाध्यक्ष राज पाल गुंबर और राजेश कुमार ने बताया कि उन्हें अधिकारियों ने विश्वास दिलाया है कि फाजिल्का से कोटकपूरा तक के सभी रेलवे स्टेशनों के प्लेटफार्मों को जल्दी ऊंचा करवाया जा रहा है। इसके अलावा फाजिल्का स्टेशन पर 1990 में उखाड़ी गई वाशिंग लाइन को फिर से स्थापित करने, फाजिल्का, जलालाबाद, मुक्तसर, कोटकपूरा स्टेशनों पर फुट ओवरब्रिज बनाने आदि की मांग की गई।अबोहरवासी भी चाहते हैं : जल्द चले टे्रन
अबोहर & रेलवे पैसेंजर वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव हनुमान दास गोयल ने रेलवे उच्चाधिकारियों को एक पत्र भेजकर अधर में लटके अबोहर-फाजिल्का रेल निर्माण का कार्य पूरा करके लाइन को शुरू करने की मांग की है। उच्चाधिकारियों को भेजे पत्र में गोयल ने लिखा है कि मंडल रेल प्रबंधक फिरोजपुर ने लगभग एक माह पहले कमिश्नर रेलवे से सेफ्टी को ऊपर लिखित लाइन को टैस्ट करके लागू किए जाने में पत्र लिखा था, लेकिन लखनऊ स्थित रेलवे सेफ्टी विभाग मुख्यालय से अभी तक रेलवे लाइन टैस्ट करने के बारे में कोई पत्र नहीं आया। गोयल ने बताया कि रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को लगभग एक महीने इस लाइन को आरंभ करने के लिए लगातार पत्र भेजे गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि इस रेलवे लाइन देशहित में सुरक्षा का काम करेगी, इसलिए इस लाइन को जल्द आरंभ किया जाएगा।ट्रायल खत्म, फिरोजपुर-हैदराबाद ट्रेन बंद
फिरोजपुर & रेलवे द्वारा तीन माह के ट्रायल के तौर पर चलाई गई फिरोजपुर-हैदराबाद ट्रेन को बंद कर दिया है। वीरवार को ट्रेन का ट्रायल पीरियड खत्म हुआ और ट्रायल के अंतिम दिन ट्रेन यहां से रवाना हुई। रेल विभाग सूत्रों अनुसार इस ट्रेन को चलाने से जहां रेलवे को लाभ नहीं पहुंचा, वहीं यात्रियों में भी इस ट्रेन के प्रति क्रेज नहीं देखने को मिला। विभाग की योजना थी कि अगर ट्रेन विभाग एवं यात्रियों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई तो इसके ट्रॉयल को एक्सटेंड कर दिया जाएगा, लेकिन तीन माह के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।


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पुडा को कारण बताओ नोटिस-Badha Lake Wetland

 अमृत सचदेवा, फाजिल्का

उपमंडल के गांव बाधा के निकट स्थित बाधा झील के किनारे खाली जगह पर पुडा द्वारा कालोनी काटने का पर्यावरण प्रेमियों का विरोध रंग ले आया है। हाईकोट ने इस संबंध में नागरिकों की याचिका को स्वीकार करते हुए पुडा को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

गौर हो कि वेटलैंड बाधा झील के किनारे पुडा द्वारा करीब आठ एकड़ जमीन में कालोनी काटे जाने की न केवल घोषणा की गई है, बल्कि कालोनी में काटे जाने वाले प्लाटों का नक्शा समेत उसकी कीमत भी जारी कर दी है। आगामी कुछ दिनों में उस जगह की बोली भी शुरू होने वाली थी। लेकिन फाजिल्का के पर्यावरण प्रेमियों ने बाधा झील का अस्तित्व समाप्त होने की आशंका के मद्देनजर पहले तो पुडा के अधिकारियों से बातचीत का प्रयास किया। लेकिन बात न बनने पर झील को बचाने के लिए संघर्ष कर रही संस्था वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का के सचिव इंजीनियर नवदीप असीजा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने पुडा को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। अदालत ने सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तिथि मुकर्रर की है। याचिका स्वीकार किए जाने पर पर्यावरण प्रेमियों में खुशी की लहर है जबकि झील किनारे प्लाट खरीदने का सपना संजोए बैठे लोगों को निराशा छाई है।


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Thursday 11 August 2011

SHIROMANI AKALI DAL BADAL FOR UPA GOVT’S NAME IN GUINNESS BOOK OF WORLD RECORD FOR RAMPANT CORRUPTION GADKARI CONFIDENT OF STAGING COME BACK OF SAD-BJP


BADAL FOR UPA GOVT’S NAME IN GUINNESS BOOK OF WORLD RECORD FOR RAMPANT CORRUPTION
 
GADKARI CONFIDENT OF STAGING COME BACK OF SAD-BJP


ANKUR SHARMA
FAZILKA AUGUST 11: Chief Minister Punjab S. Parkash Singh Badal today said Congress led UPA government has surpassed all the records of rampant corruption and it was the most corrupt government in the world which would soon find mention in the ‘Guinness Book of World Record’.
Thousands of people from all walks of life today converged at here the local grain market on the occasion of the thanks giving rally organized by the BJP for the upgradation of Fazilka sub-division as District thereby fulfilling the long pending demand of the local residents. 
            Addressing a mammoth gathering here on the thanks giving rally organized by the BJP after the up-gradation of Fazilka sub-division as new district, S. Badal said UPA government had almost lost the confidence of the public and therefore, it has no moral right to continue in the office. He said scams and scandals were the order of the day in Congress led UPA government. S. Badal said Centre’s gross discrimination and apathetic attitude towards Punjab had virtually reduced our position to beggars. He said our state was being denied its due share in the revenue collected by Centre from the states which was just a mockery on the part of Indian federalism. He said the maladies like unemployment, illiteracy, poverty and inflation had enormously affected the life of common man (Aam Adami) to whom the Congress claimed to be champion for safeguarding his rights but on the contrary it was indulging in sheer exploitation of the common man for its own vested interests. 
            S. Badal further said the SAD-BJP alliance would comfortably repeat the next government in Punjab after the assembly polls.  He appealed the people not to be complacent in their fight both in SGPC general elections and subsequently the assembly elections after two months to ensure the victory of SAD. He said gone were the days when it was a tradition in the state that the ruling party never came in power after assembly polls. He asserted this myth would be proved wrong as SAD--BJP would again form the government in the state as contrary to the tall claims of Congress of routing us from the state politics. He said Congress was living in fool’s paradise if it was still contemplating of winning elections in Punjab despite the fact of rampant corruption and administrative failure at the helm of affairs in Centre. 
            Training guns at Congress leadership in the state, S.Badal said it has been exposed of its double speak being claiming to be secular on one hand and meddling in the Sikh religious affairs on the other.  
            In his address President Shiromani Akali Dal and Deputy Chief Minister S.Sukhbir Singh Badal said the creation of Fazilka as new district was a gift to the residents of this town. He said the people of the area deserved Fazilka to be a district in view of its historic importance and therefore, the Chief Minister generously conceded to the demand raised by the local MLA.  He said SAD-BJP government was sensitized to the problems of people at the grass root levels whereas the Congress never bothered about their genuine problems for the reasons best known to them.  He said SAD-BJP alliance had drawn a roadmap to ensure overall development and prosperity in the state over a period of next 25 years. He pointed out several path breaking initiatives have been taken in the field of power, infrastructure, education and social security and hope Punjab it soon become a power surplus state in the country. He sought support from the people of Punjab to bring SAD-BJP alliance again in power so that the unaccomplished agenda could be implemented in the right earnest. 
            Virtually kick starting his party’s election campaign, the National President of BJP Mr. Nitin Gadkari in his address said the SAD-BJP alliance had ushered an era of overall development and prosperity in the state.  Mr.Gadkari said he was confident that SAD-BJP would repeat government after the forthcoming assembly elections exclusively on the plank of development and performance. 
            Appreciating the efforts of Chief Minister Punjab S. Parkash Singh Badal for giving the status of district to the historic towns of Fazilka and Pathankot had certainly boost the moral of the rank and file of the BJP in the state.  On the other hand, congress had been befooling the people and playing havoc with the sentiments of the local residents by making false promises to accord the status of district to Fazilka.   
            Lambasting at the Congress government at Centre for its involvement in the bungling in CWC, Mr. Gadkari said the organizing committee under the chairmanship of Suresh Kalmadi spent 980 crore on the renovation of Jawaharlal Nehru stadium whereas it merely needed 200 crore for the entire works as pointed by the CAG in its report. 
            Earlier the Local MLA and Transport Minister Mr. Surjit Kumar Jiyanai in his welcome address expressed his gratitude to the Chief Minister for making Fazilka as a district. 
            Prominent amongst others who spoke on the occasion were President State Unit of BJP Punjab Mr. Ashwani Sharma, Incharge Punjab Affairs of BJP Mr. Shanta Kumar, National General Secretary Mr. JP Naddha, Mr. Tikshan Sud and Mr. Arunesh Shakir (both Cabinet Minister), MP Lok Sabha Mr. Sher Singh Gubaya, MP Rajyasabha Mr. Avinash Rai Khanna, CPS Mr. KD Bhandari and former state President of BJP Mr.Brij Lal Rinwa. Senior party leaders and workers of BJP and SAD also present on the occasion


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Wednesday 10 August 2011

Fazilka Abohar railway line


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स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां जोरों पर, सौंपी जिम्मेदारियां

फाजिल्का & स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियों का जायजा लेने के लिए डीसी डॉक्टर बसंत गर्ग ने मिनी सचिवालय में अधिकारियों के साथ बैठक की। कार्यक्रम को योजनाबद्ध तरीके से करवाने के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों को जिम्मेदारियां सौंपी।
बैठक में बीएसएफ अधिकारियों के अलावा अन्य विभागों के अधिकारियों ने भी भाग लिया। इस दौरान पीने के पानी के लिए स्वास्थ्य विभाग एवं मार्केट कमेटी, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए स्वास्थ्य विभाग, बिजली सप्लाई के लिए पॉवरकॉम, बच्चों को लड्डू, चाय आदि का प्रबंध करने के लिए खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के डीएफएसओ के जिम्मेदारी सौंपी गई। कार्यक्रम में अग्निशमन विभाग की दो गाडिय़ां व एक मोबाइल गाड़ी हर समय तैयार रहेगी। स्वतंत्रता दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों व कारगिल के शहीदों के परिवारों को सम्मानित करने के लिए डिप्टी डॉयरेक्टर सैनिक विभाग तथा बीडीपीओ की ड्यूटी लगाई गई है।
डीसी ने कहा कि इस बारे में आगे की तैयारियों की समीक्षा के लिए अगली बैठक 10 अगस्त को सरकारी एमआर कालेज के स्टेडियम में होगी। बैठक में एडीसी विकास चरण देव सिंह मान, एसएसओ आर्मी मेजर नीरज, डिप्टी कमांडेंट कुलवंत सिंह बीएसएफ, डिप्टी कमांडेंट मनीष कुमार, एसपी बलबीर सिंह, ईओ सुखदेव सिंह, एएफएसओ हिमांशु कुक्कड़ आदि मौजूद थे।

.bhaskar.
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डीसी ने फाजिल्का, जलालाबाद में की पोलिंग बूथों की चेकिंग

फाजिल्का & फाजिल्का जिला के डीसी कम-जिला चुनाव अधिकारी डा. बसंत गर्ग ने विधानसभा हलके जलालाबाद व फाजिल्का के विभिन्न पोलिंग बूथों की रैंडम चेकिंग की। इस अवसर पर उन्होंने जलालाबाद हलके के 8 और फाजिल्का के 4 पोलिंग बूथों की चेकिंग की। इस दौरान नई बनाई जा रही वोटों की लिस्टों की जांच की गई। इस अवसर पर जलालाबाद के तहसीलदार रोहित गुप्ता, फाजिल्का के तहसीलदार आत्मा सिंह के अतिरिक्त चुनाव विभाग के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे। वोटरों की समस्याएं सुनी : जिलाधीश डा. गर्ग ने बताया कि जांच दौरान नई बनाई गई वोटों की जांच की गई, यह सभी वोट सही पाई गई व इनमें कोई गलती नहीं पाई गई। इस...
http://www.bhaskar.com/punjab/ferozpur_zila/fazilka/
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Friday 5 August 2011

लो आई मिस कल और लग गया चुना, इन मोबाइल नम्बरों से रहो सावधान


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हमारी आस्था बनी नागों की मुसीबत

खंडवा [ नदीम रॉयल ]नागपंचमी आते ही सपेरों के पीटारे सड़कों पर नजर आने लगे हैं. यह समला जीव अत्याचार की श्रेणी में आता है. फिर भी कई गरीब सपेरों का पेट पल रहा है. यहां तक की वनविभाग वाले भी इन सपेरों की जरूरत पड़ने पर सहायता लेते हैं. नागपंचमी पर पुण्य कमाने के लिए पांच सौ से एक हजार रूपए तक लेकर ये बंदी बनाएं सांपों को रिहा भी करते हैं. इतना नहीं अधिकांषतः सपेरे अपने बच्चों के नाम भी सांप की प्रजातियों वाले ही रखते हैं. पद्मानागिन, घोडापछाड़ देषी प्रजातिया कालबेलिएं लेकर धूमते मिल जाएंगे. लगभग पच्चीस से तीस सपेरों ने षहर में डेरा डाल रखा है. नागपंचमी के कुछ दिन बाद तक ये षहर में दिखाई पडे़गे. सौ से अधिकांष सांप और उनेक जोडे़ इनके पास बंदी है.

वनविभाग भी सहयोगी: सांप यदि फन फैलाता हुआ दिख जाए, तो अच्छे-अच्छे को पसीना आ जाता है. वनविभाग वाले भी सांप पकड़ने के लिए हमे बुलाते है़ यह कहना था सपेरे जारूनाथ का. वैसे तो फारेस्ट की जिम्मेदारी जानवरों की सुरक्षा है. सपेरों की माने तो वनविभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी अपनी जान बचाने के लिए सांप पकड़ने बुलाते है़ इनकी जिंदगी और मौत के बीच कोई बड़ा फासला नहीं होता है़ थोडी सी गलती हुई और पलभर में मौत़ कितने ही अनुभवी भी सांप काटने से मौत के षिकार हो चुके है़ पेट की

मजबूरी या परंपरा:
हाथ पे सांप कटवाना और बीन पर नचवाने में जान जोखिम में डालने का काम है. कुछ सपेरों के लिए यह मजबूरी है, तो कुछ के लिए परंपरा निर्वाह करना. एक सपेरे ने बताया कि पीढ़ियों से वे यह काम कर रहे है. उनके भगवान कनकनाथ की आज्ञा से परिवार वाले इस काम में लगे हुए है. वास्तव में वे योगीनाथ घराने से है. सांप को काल कहा जाता है. इसे पकड़ने के कारण कालभेड़िए लोग कहते हैं कि दिनभर में पंचास से साट रूपए आमदनी हो पाती है. सावन में अच्छी कमाई हो जाती है. नागपंचमी पर मिले कपडे़ सालभर चल जाते है. मनुबय को काटने पर जहर उतारने का फन पीढि.यों से मिला है. यदि दिमाग में जहर फैल जाए, तो उसे कोई नहीं बचा सकता.

. सांप मांसाहारी होता है. सपेरे इन्हें पकड़कर दूध में आटा घोलकर पिलाते है. इससे इनकी आयु घटती है.
. विबा ग्रंथि निकाल दी जाती है. जिंदा छोड़ने पर भी सांप के बचने की कोई उम्मीद नहीं रहती. विबा इने लिए एंटीबायोटिक होता है.
. बनी की आवाज से ये प्रसन्न होकर नहीं नाचते, बल्कि इसके कंपन्न से घबराकर फन फैलाकर खडे़ हो जाते है.
. नागपंचमी पर पैसे की लालच में जबरन दूध मुंह में डाला जाता है अधिक होने पर इनी मौत भी हो सकती है.

tez news
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भारत,ग्लोबल वॉर्मिन्ग और बढती आबादी

भारत ग्लोबल वॉर्मिन्ग के लिहाज से हॉट स्पॉट है और इस वजह से यहां बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ सकती हैं। एशिया में भारत के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया उन देशों में शामिल हैं, जो अपने यहां चल रही राजनैतिक, सामरिक, आर्थिक प्रक्रियाओं के कारण ग्लोबल वॉर्मिन्ग से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

किसी भी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव कई कारकों के आधार पर मापा जाता है। मसलन सही उपकरणों और सूचना तक पहुंच और राहत और उपाय के लिए प्रभावी राजनैतिक तंत्र। कई बार इनका प्रभावी तरीके से काम न करना आपदा से प्रभावित होने वाले हाशिए पर पड़े लोगों की जिंदगी और भी बदतर कर देता है।
मौसम में बदलाव के कारण ज्यादा बड़े स्तर पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए, नही तो तबाही और ज्यादा होगी। घनी आबादी वाले और खतरे की आशंका से जूझ रहे इलाकों में सरकारी तंत्र और स्थानीय लोगों को सुविधाएं और प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि आपदा के बाद पुनर्वास के दौरान तेजी बनी रहे और काम की निगरानी भी हो।

हमारी पर्यावरण चिंताओं पर यह निराशावादी सोच इतनी हावी होती जा रही है कि अब यह कहना फैशन बन गया है कि जनसंख्या यूं ही बढ़ती रही तो 2030 तक हमें रहने के लिए दो ग्रहों की जरूरत होगी।

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई अन्य संगठन इस फुटप्रिंट को आधार बनाकर जटिल गणनाएं करते रहे हैं। उनके मुताबिक हर अमेरिकी इस धरती का 9।4 हेक्टेयर इस्तेमाल करता है। हर यूरोपीय व्यक्ति 4.7 हेक्टेयर का उपयोग करता है। कम आय वाले देशों में रहने वाले लोग सिर्फ एक हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर हम सामूहिक रूप से 17.5 अरब हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम एक अरब इंसानों को धरती पर जीवित रहने के लिए 13.4 हेक्टेयर ही उपलब्ध है।

सभी तरह के उत्सर्जन में 50 फीसदी की कटौती से भी हम ग्रीन हाउस गैसों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। एरिया एफिशियंशी के लिहाज से कार्बन कम करने के लिए जंगल उगाना बहुत प्रभावी उपाय नहीं है। इसके लिए अगर सोलर सेल्स और विंड टर्बाइन लगाए जाएं, तो वे जंगलों की एक फीसदी जगह भी नहीं लेंगे। सबसे अहम बात यह है कि इन्हें गैर-उत्पादक क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। मसलन, समुद में विंड टर्बाइन और रेगिस्तान में सोलर सेल्स लगाए जा सकते हैं।

जर्नल 'साइंस' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों को तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उपज में कमी की वजह से खाद्य संकट का सामना करना पड़ेगा। तापमान में बढ़ोतरी से जमीन की नमी प्रभावित होगी, जिससे उपज में और ज्यादा गिरावट आएगी। इस समय ऊष्ण कटिबंधीय और उप-ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में तीन अरब लोग रह रहे हैं।एक अनुमान के मुताबिक 2100 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी अमेरिका से लेकर उत्तरी अर्जेन्टीना और दक्षिणी ब्राजील, उत्तरी भारत और दक्षिणी चीन से लेकर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और समूचा अफ्रीका इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्लेशियरों के पिघलने से भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देशों में आबादी का वह निर्धन तबका प्रभावित होगा जो प्रमुख एवं सहायक नदियों पर निर्भर है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 में बिजली सप्लाई के दूसरे ऊर्जा विकल्पों की तुलना में न्यूक्लियर पावर का योगदान 16 प्रतिशत है , जो 2030 तक 18 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इससे कार्बन उत्सर्जन की कटौती के काम में काफी मदद मिल सकती है , पर इसके रास्ते में अनेक बाधाएं हैं - जैसे परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा की चिंता , इससे जुड़े एटमी हथियारों के प्रसार का खतरा और परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले एटमी कचरे के निबटान की समस्या।
अगर एटमी ऊर्जा का विकल्प ऐसे देशों को हासिल हो गया , जिनका अपने एटमी संयंत्रों पर पूरी तरह कंट्रोल नहीं है , तो यह विकल्प काफी खतरनाक हो सकता है। ऐसी स्थिति में वे न सिर्फ खुद बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार बनाकर दुनिया के लिए बड़ी भारी चुनौती खड़ी कर सकते हैं और आतंकवादी भी इसका फायदा उठा सकते है ।

आज दुनिया एटमी कचरे के पूरी तरह सुरक्षित निष्पादन का तरीका नहीं खोज पाई है। इसका खतरा यह है कि अगर किसी वजह से इंसान उस रेडियोधर्मी कचरे के संपर्क में आ जाए , तो उनमें कैंसर और दूसरी जेनेटिक बीमारियां पैदा हो सकती हैं। इन स्थितियों के मद्देनजर जो लोग ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के सिलसिले में एटमी एनर्जी को एक समाधान के रूप में देखने के विरोधी हैं , वे अक्सर अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्रोतों को ज्यादा आकर्षक और सुरक्षित विकल्प बताते हैं।
एटमी एनर्जी कोई सरल - साधारण हल नहीं हो सकती , क्योंकि एक न्यूक्लियर प्लांट को चलाने के लिए बहुत ऊंचे स्तर की तकनीकी दक्षता , नियामक संस्थानों और सुरक्षा के उपायों की जरूरत पड़ती है। यह भी जरूरी नहीं है कि ये सभी जगह एक साथ मुहैया हो सकें। इसकी जगह अक्षय ऊर्जा के विकल्पों में सार्वभौमिकता की ज्यादा गुंजाइश है , पर इनमें भी कुछ चीजों की अनिवार्यता अड़चन डालती है। उदाहरण के लिए सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा की क्षमता वहां हासिल नहीं की जा सकती , जहां सूरज की किरणें और हवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हों। जिन देशों में साल के आठ महीने सूरज के दर्शन मुश्किल से होते हों , वहां सौर ऊर्जा का प्लांट लगाने से कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसी तरह पवन ऊर्जा के प्लांट ज्यादातर उन इलाकों में फायदेमंद साबित हो सकते हैं , जो समुद्र तटों पर स्थित हैं और जहां तेज हवाएं चलती हैं।

किसी भी देश को अपने लिए ऊर्जा के सभी विकल्पों को आजमाना होगा और अगर उसके लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन महत्वपूर्ण मुद्दा है , तो उसे अक्षय ऊर्जा बनाम एटमी ऊर्जा के बीच सावधानी से चुनाव करना होगा। यह स्वाभाविक ही है कि एटमी एनर्जी को लेकर कायम चिंताओं के बावजूद अगले पांच वर्षों में इसमें उल्लेखनीय इजाफा हो सकता है। बिजली पैदा करने वाले ताप संयंत्र ( थर्मल प्लांट ) भारी मात्रा में कार्बन डाइ - ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं , जबकि उनकी तुलना में एटमी संयंत्र क्लीन एनर्जी का विकल्प देते हैं। उनसे पर्यावरण प्रदूषण का कोई प्रत्यक्ष खतरा नहीं है। आज दुनिया जिस तरह से क्लीन एनर्जी के विकल्प आजमाने पर जोर दे रही है , उस लिहाज से भी भविष्य परमाणु संयंत्रों से मिलने वाली बिजली का ही है। परमाणु संयंत्रों से मिलने वाली बिजली काफी सस्ती भी पड़ सकती है ।
सरकार और प्राइवेट सेक्टर को अक्षय ऊर्जा के मामले में शोध और डिवेलपमंट पर भारी निवेश करने की जरूरत है। इससे अक्षय ऊर्जा की लागत में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकेगी। आज की तारीख में कार्बन उत्सर्जन की कीमत पर अक्षय ऊर्जा प्राप्त करने की लागत एटमी एनर्जी की तुलना में काफी ज्यादा है।

ऑस्ट्रेलिया के पास मौजूद पापुआ न्यूगिनी का एक पूरा द्वीप डूबने वाला है। कार्टरेट्स नाम के इस आइलैंड की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है जिसे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ रहा है - यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी। जिस टापू पर ये लोग रहते हैं वह 2015 तक पूरी तरह से समुद्र के आगोश में समा जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया की नैशनल टाइड फैसिलिटी ने कुछ द्वीपों को मॉनिटर किया है। उसके अनुसार यहां के समुद्र के जलस्तर में हर साल 8।2 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ने के साथ यह समस्या और बढ़ती जाएगी। कार्टरेट्स के 40 परिवार इसके पहले शिकार हैं।

इस तरह हमें ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को काफी गंभीरता से लेना होगा । क्योटो प्रोटोकाल के बाद आने वाले प्रोटोकाल में इसके लिए पुख्ता इंतजाम किया जाना चाइये ताकि कोई भी अपनी जिम्मेदारी से बच नही सके । भारत सरकार को भी अपने स्टार से जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए । हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ नही कर सकते अगर करते है तो आने वाली जेनेरेशन को जवाब देना पड़ेगा । अभी समय है और समय रहते ही त्वरित उपाय करने होंगे नही तो परिणाम भयंकर हो सकते है ।

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जननी सुरक्षा का कमाल,पुरुषो ने दिया बच्चो को जन्म

उदयपुर [ तारिक हबीब] आप हैरत में पड जायेगा। आपने सोचा भी नहीं होगा कि पुरुष भी बच्चे पैदा कर सकते हैं? शायद नहीं। पर राजस्थान में ऐसा ही हो रहा है। राजस्थान के स्वास्थ्य केंद्र पर ऐसी एक नहीं 32 घटनाएं दर्ज हैं। यहीं नहीं यहां एक महिला ने एक साल में 24 बार बच्चों को जन्म दिया है। गिनेस बुक के विश्व रेकॉर्ड को तोड़ देने वाले इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि यह हकीकत नहीं बल्कि एक नया घोटाला है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उदयपुर के करीब एक कस्बे के गोगुंडा सामुदायिक केंद्र में स्थानीय स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को इस घोटाले का पता लगाया।इस केंद्र की गर्भावस्था सहायिकाओं ने केंद्र सरकार की जननी सुरक्षा योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे की गर्भवती महिलाओं के लिए निर्धारित सहायता राशि को हड़पने के लिए गलत रिपोर्ट पेश की।

जननी सुरक्षा योजना के तहत पहले दो बच्चों के जन्म के लिए गरीबी रेखा से नीचे की महिला को 1700 रुपये और प्रत्येक प्रसव पर मिडवाइफ को इसके लिए 200 रुपये मिलते हैं। योजना का मकसद प्रसव के दौरान जच्चे और बच्चे की होने वाली मृत्यु को रोकना है। योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले कई तरह की सेवाएं और सुविधाएं दी जाती हैं।

अधिकारी ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र के रेकॉर्ड में ऐसे 32 पुरुषों के नाम दर्ज हैं, जिन्होंने संतान को जन्म दिया। इनमें से कुछ के नाम कई बार दर्ज हैं।
रेकॉर्ड के अनुसार 60 साल की महिला ने साल में दो बार बच्चे को जन्म दिया। सीता नाम की महिला ने तो साल में 24 बच्चे पैदा किए। अधिकारी ने बताया कि गर्भवास्था वार्ड की प्रमुख ने खुद भी एक साल में 11 बच्चे पैदा किए।

अधिकारी ने बताया कि घोटालों के उजागर होने के बाद वार्ड प्रमुख को पद से हटा दिया गया है और वह इस समय फरार है। उसने बताया कि विभागीय जांच के बाद शिकायत दर्ज कराई जाएगी। जांच के लिए तीन सीनियर डॉक्टरों की टीम बनाई गई है।

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किस करवट बैठेगा ‘भ्रष्टाचार का ऊंट

 निर्मल रानी]
वरिष्ठ गांधीवादी एवं समाजसेवी अन्ना हज़ारे द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे को प्रबलता से उठाए जाने के बाद निश्चित रूप से देश में भ्रष्टाचार विरोधी वातावरण बहुत तेज़ी से बनता दिखाई दे रहा है। भले ही केंद्र सरकार द्वारा कथित ‘सिविल सोसायटी’ का प्रतिनिधित्व करने वाली,टीम अन्ना द्वारा सुझाए गए जनलोकपाल विधेयक के प्रारूप को पूरी तरह स्वीकार न किया गया हो परंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सरकार द्वारा सदन में लोकपाल विधेयक लाए जाने में तत्परता दिखाए जाने का कारण भी महज़ टीम अन्ना हज़ारे द्वारा सरकार पर डाला गया दबाव ही है। अन्ना हज़ारे द्वारा गत् 4 अप्रैल को जंतर-मंतर पर किए गए आमरण अनशन तथा उसी दौरान न केवल लगभग पूरे देश में बल्कि कई अन्य देशों में भी अनशन, प्रदर्शन व धरनों के बाद तथा इन सब के बाद केंद्र सरकार द्वारा टीम अन्ना के समक्ष घुुटने टेकने की घटना के पश्चात भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम और अधिक र$फतार पकड़ चुकी है। अन्ना हज़ारे द्वारा 4 अप्रैल को जंतर-मंतर पर किए गए आमरण अनशन से लेकर अब तक के तमाम उतार-चढ़ाव के बाद अब एक बार फिर पूरा देश आने वाली 16 अगस्त यानी अन्ना के आमरण अनशन की एक और धमकी वाले दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है। देश की आम जनता अब वास्तव में यह जानना चाहती है कि देखें भ्रष्टाचार रूपी दैत्याकार ऊं ट आखिऱ किस करवट बैठता है।

भ्रष्टाचार संबंधी बहस इस समय वैसे भी देशवासियों के लिए दिलचस्पी का अहम मुद्दा इसलिए बन गई है क्योंकि भ्रष्टाचार में डूबा,भ्रष्टाचार का आदी हो चुका तथा भ्रष्टाचार करने के लिए मजबूर व अपनी सुविधाओं के चलते भ्रष्टाचार क ो प्रोत्साहन देने वाला देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने अथवा इस पर अंकुश लगाने जैसी बातों को रचनात्मक बात नहीं मानता। शायद यही वजह है कि भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डा० कौशिक बसु ने रिश्वत $खोरी को सुविधा शुल्क का नाम देते हुए इसे वैधानिक जामा पहनाए जाने की वकालत की थी। बहरहाल भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आम लोगों क ा अलग-अलग मतों में बंटा होना इस बात का प्रमाण नहीं माना जा सकता कि रिश्वत ख़ोरी व भ्रष्टाचार सभ्य एवं सम्मान जनक राष्ट्र के निवासियों के लक्षण हैं। निश्चित रूप से भ्रष्टाचार व रिश्वत खोरी इस समय देश को दीमक के समान चाटे जा रहे हैं और यही बुराई, काला धन, जमा$खोरी विभिन्न प्रकार के अपराध,अराजकता, देश में फैली $गरीबी,बदहाली,अव्यवस्था यहां तक कि बदहाल समाज की नुमांईदगी करने का दम भरने वाले हिंसक माओवाद तथा नक्सलवाद की भी जड़ हैं। भ्रष्टाचार देश के चहुंमुखी विकास के लिए भी बड़ा रोड़ा है।

राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रप्रेम तथा देश के विकास की उम्मीदें संजोने वाला हर व्यक्ति निश्चित रूप से इस समय भ्रष्टाचार से बेहद दुखी है। यदि ऐसा न होता तो अन्ना हज़ारे जैसे साधारण सामाजिक कार्यकर्ता के साथ देश का असंगठित भ्रष्टाचार विरोधी समाज जंतर-मंतर पर किए गए मात्र चंद दिनों के उनके अनशन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर उनके साथ इस प्रकार संगठित होकर खड़ा न हुआ होता। अन्ना हज़ारे ने निश्चित रूप से ऐसे समय में जन लोकपाल विधेयक की मांग के साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे को उछाला है जबकि देश के लोगों को ऐसा महसूस होने लगा था कि गोया देश की व्यवस्था अब देश को बेच खाने पर ही उतारू हो गई है। जिस देश मेें केंद्रीय मंत्री, भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रवाद का स्वयं भू पैरोकार बताने वाली भारतीय जनता पार्टी जैसे दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण, मुख्यमंत्री के रूप में मधु कौड़ा जैसे लुटेरे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, सुरेश कलमाड़ी जैसी हस्तियां तथा देश के अन्य तमाम राज्यों के तमाम मंत्री,सांसद तथा विधायक आदि भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी में संलिप्त पाए जाएं तथा देश के तमाम नेता, उच्च अधिकारी यहां तक कि लिपिक स्तर के कर्मचारी तक आय से अधिक धन संपत्ति इक_ी करने लग जाएं तो ऐसे में देश के आम आदमी विशेषकर ईमानदार व सच्चे राष्ट्रभक्त व्यक्ति का चिंतित होना स्वाभाविक ही है।

जंतर-मंतर पर 4 अप्रैल को हुए अन्ना हज़ारे के अनशन से लेकर 16 अगस्त क ो उन्हीं के द्वारा इसी मुद्दे पर पुन: आमरण अनशन शुरू करने के अंंतराल के दौरान टीम अन्ना तथा केंद्र सरकार के मध्य वार्ताओं का जो दौर चला तथा संसद में पेश किए जाने वाले सरकारी लोकपाल विधेयक व टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक के मसविदों के मध्य जो टकराव व विवाद की स्थिति देखी जा रही है उसे देखकर भी आम जनता बेहद दुखी है। प्रधानमंत्री हों अथवा देश का मुख्य न्यायधीश यहां तक कि भारत का सर्वाेच्च प्रथम नागरिक भारतीय राष्ट्रपति तक हमारे ही देश के समाज के सदस्य होते हैं। किसी भी बड़े से बड़े अथवा छोटे से छोटे पद पर बैठने वाले व्यक्ति का पारदर्शी होना अथवा उसे अपने ऊपर लगने वाले किन्हीं आरोपों का जवाब देना किसी भी व्यक्ति के लिए कोई अपमानजनक बात नहीं मानी जा सकती। यहां यह लिखने की ज़रूरत तो नहीं कि देश का कौन-कौन सा विभाग रिश्वत व भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुका है। बजाए इसके यह ज़रूर सवाल किया जा सकता है कि देश की व्यवस्था स्वयं इस बात का जवाब दे कि आखिर देश का कौन सा विभाग ऐसा है जिसमें भ्रष्ट लोग नहीं हैं। जिसमें रिश्वत $खोरी $कतई नहीं चलती या जिससे जुड़े लोग बिना किसी दबाव या सिफारिश के काम नहीं करते ? भ्रष्टाचार के संबंध में बार-बार जो यह बात कही जा रही है कि देश आकंठ भ्रष्टचार में डूबा है इसका अर्थ ही यही है कि देश के लगभग सभी तंत्र यहां तक कि सारी की सारी व्यवस्था भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।

ऐसे में सरकार का ‘टीम अन्ना’ द्वारा सुझाए गए जनलोकपाल विधेयक के मसविदे पर उंगली उठाने या उसे अस्वीकार करने अथवा उस पर बेवजह की नुक्ताचीनी करने का कोई औचित्य नज़र नहीं नहीं आता। आम जनता प्रधानमंत्री व मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखने के सरकारी पक्ष से $कतई सहमत नज़र नहीं आती। सरकार द्वारा अपने लोकपाल विधेयक के पक्ष में जितने तर्क दिए जा रहे हैं सभी तर्कों को टीम अन्ना $खारिज कर रही है। सरकार जहां टीम अन्ना के जनलोकपाल विधेयक मसौदे को स्वीकार करने में आनाकानी कर रही है वहीं टीम अन्ना सरकारी मसौदे को जनता के साथ मज़ाक तथा धोखा बता रही है। मज़े की बात तो यह है कि सरकारी पक्ष की ओर से भी प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ नेता पैरोकार हैं जिनकी ईमानदारी को लेकर संदेह नहीं किया जा सकता। सरकारी पक्ष का भी इत्ते$फा$क से वही कहना है जो टीम अन्ना कह रही है या जो देश का आम नागरिक कह रहा है। अर्थात् भ्रष्टाचार व रिश्वत$खोरी बंद हो, भ्रष्टाचारियों को स$ख्त सज़ा हो तथा इनकी भ्रष्टाचार की कमाई को सरकार ज़ब्त करे। ऐसे में मात्र मुख्य न्यायधीश तथा प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच परिधि से बाहर रखने का सरकारी पक्ष का मत जनता के गले से नहीं उतर पा रहा है। सरकार द्वारा अपनी इस बात के पक्ष में दिए जाने वाले सभी तर्क भी बेदम नज़र आ रहे हैं।

ऐसे में संदेह यह होने लगा है कि क्या वास्तव में सरकार व टीम अन्ना के बीच का मतभेद सिर्फ इसी विषय को लेकर है कि प्रधानमंत्री व मुख्य न्यायाधीश लोकपाल की जांच के दायरे में आएं या न आएं? अथवा सरकार द्वारा इस मुद्दे को केवल इसलिए बहाने के रूप में इस्तेमाल किया गया है ताकि सदन में इसे लाने से टाला जा सके। और यदि सरकार टाल-मटोल के लिए मसविदे के इस विशेष बिंदु को बहाना बना रही है फिर आखिर इस बहाने बाज़ी की वजह व इसका रहस्य क्या है? और इस मामले में एक दुर्भाग्य पूर्ण बात यह भी दिखाई देती है कि जब भी टीम अन्ना के सदस्य सरकारी पक्ष के तर्कों को अपने तर्कों से धराशायी करते हैं उस समय सरकारी पक्ष के पैरोकार आनन-$फानन में देश के लोकतंात्रिक ढांचे तथा संवैधानिक व्यवस्था का तकनीकी सहारा लेकर टीम अन्ना से यह पूछने लग जाते हैं कि आप हैं कौन? किसने दिया आपको यह अधिकार कि आप स्वयंभू रूप से देश की जनता के बैठे -बिठाए नुमाइंदे बन बैठें? सरकारी पक्ष के पैरोकारों का यह तर्क तर्कपूर्ण,वैधानिक अथवा संवैधानिक तो माना जा सकता है परंतु नैतिक कतई नहीं।

इस विषय पर अन्ना हज़ारे हालांकि चुने गए जनप्रतिनिधियों को स्वीकार करते हैं उन्हें मानते हैं तथा चुने गए जनप्रतिनिधि के नाते उन्हें पूरा सम्मान व महत्व भी देते हैं। और यही वजह है कि लोकपाल विधेयक के माध्यम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का जि़म्मा अन्ना हज़ारे सरकार व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर ही छोडऩा चाहते हैं। वे स्वयं इस भ्रष्टाचार विरोधी सुधार तंत्र का हिस्सा नहीं बनना चाहते। परंतु अन्ना हज़ारे जनता के मध्य समाजसेवी की अपनी हैसियत व पहचान को चुनौती देने वाले ‘वास्तविक’ जनप्रतिनिधियों को यह ज़रूर याद दिलाते हैं कि आप को जनता ने अपना प्रतिनिधि इसलिए नहीं चुना कि आप देश को लूटें, बेचें और खाएं। बल्कि इसलिए चुना है ताकि आप देश को भ्रष्टाचार से मुक्त रखते हुए पूरी ईमानदारी व पारदर्शिता के साथ इसे प्रगति के पथ पर ले जा सकें।

सरकारी पक्ष व टीम अन्ना के मध्य का विवाद अब इस इंतेहा तक पहुंच चुका है कि अन्ना हज़ारे ने जन लोकपाल विधेयक के अपने प्रारूप के सर्मथन में एक बार फिर 16 अगस्त को दिल्ली में आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी है। इसे वे स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई का नाम दे रहे हैं। सरकार द्वारा भी जंतर मंतर पर हुए अन्ना हज़ारे के पिछले आमरण अनशन के बाद तथा बाद में ‘रामलीला’ मैदान में हुए अपने अनुभव के अनुसार 16 अगस्त के लिए भी रक्षात्मक $कदम उठाने की कोशिश की जा रही है। कभी धारा 144 लगाई जाती है तो कभी अदालत के भयवश इस आदेश को वापस भी ले लेती है। और कभी जंतर-मंतर को अनशन स्थल के लिए प्रयोग करने की इजाज़त देने से इंकार किया जाता है। ऐसे तनावपूर्ण वातावरण में आम जनता की नज़रें एक बार फिर 16 अगस्त पर जा टिकी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि देश में भ्रष्टाचार विरोधी इतनी व्यापक मुहिम पहले कभी नहीं छिड़ी। आम आदमी की नजऱें इस लिए भी 16 अगस्त पर जा टिकी हैं कि आखिर टीम अन्ना व सरकारी पक्ष के मतभेदों व विवादों के बीच भ्रष्टाचार का यह ऊंट बैठेगा किस करवट? 

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Tuesday 2 August 2011

2013 तक दुनियाभर में 25,000 नौकरियों में कटौती

लंदन[ एजेंसी ] एचएसबीसी बैंक साल 2013 तक दुनियाभर में 25,000 नौकरियों में कटौती करेगा। इस साल के शुरुआती छह महीनों में इस बैंक का प्रदर्शन अच्छा रहने के बावजूद यह निर्णय लिया गया है।

साल 2011 के पहले छह महीनों में बैंक को 11.5 अरब डॉलर का पूर्व-कर लाभ हुआ है। इसमें साल दर साल तीन प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इसमें साल 2010 के आखिर के छह महीनों की तुलना में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एचएसबीसी ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह लातिन अमेरिका, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और मध्य पूर्व में 5,000 नौकरियों में कटौती करेगा।

एचएसबीसी के सीईओ स्टूअर्ट गुलिवर का कहना है, "नौकरियों में और भी कटौती होगी।" उनके अनुमान के मुताबिक साल 2013 के अंत तक 25,000 नौकरियों में कटौती होगी। दुनियाभर से एचएसबीसी की नौकरियों में कुल 10 प्रतिशत तक की कटौती होगी। बैंक ने रविवार को कहा था कि वह अपनी अमेरिका की 19.5 करोड़ डॉलर की शाखाओं को फर्स्ट नियाग्रा फाइनेन्शियल को एक अरब डॉलर में बेच देगा और 13 अन्य शाखाओं को बंद कर देगा। लंदन शेयर बाजार में सोमवार दोपहर तक एचएसबीसी के शेयरों का मूल्य चार प्रतिशत तक बढ़ गया था।

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आओ हम सब मिल कर फाजिल्का की शान घंटा घर की घड़ियों को चलवाने के लिये आवाज उठाये

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दोस्तों की यादों को ताज़ा किया फ्रेंडशिप- डे ने

प. केसरी
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Fazilka Eco cab rickshaws

Fazilka has become the first town in the world which can boast of having a dial-a-rickshaw facility. Just like taxies in any metros, now any one in Fazilka can call a rickshaw by dialing a number. Named as ‘Eco-Cabs’, use of these rickshaws for short distances would help in reducing the pollution in the town. This facility has been launched in the town on 20th June 2008.

The aim of the project ‘Eco-Cabs’ is to promote eco friendly, short distance mode of transport besides offering a sustainable livelihood to rickshaw-pullers also. More than 400 rickshaw-pullers are part of this project.

Initiated by the Graduates’ Welfare Association of Fazilka in collaboration with the Czech Republic-based World Car Free Network - a Czech Republic based NGO promoting non-motorised transport across 100 countries , the Ecocab programme has been launched with the grand objective of saving 328,500 litres of diesel and petrol annually and 14,000 Kg of fresh air daily simply by organizing the town’s neighborhood rickshaw-pullers into an efficient and most convenient service linked through the already-in-place mobile telephone network.

The project has been conceptualized by a retired Prof. Dr. Bhupinder Singh of IIT, Roorkee and Scientist of IIT, New Delhi, Mr. Navdeep Asija. It has been promoted by NGO Graduates Welfare Association of Fazilka, and is also a part of World Car Free Network - a Czech Republic based NGO promoting non-motorised transport across 100 countries.


With this eco-friendly initiative, Fazilka, which has already earned a name by contributing in the field of reducing global warming, has added another feather in its cap.


For having this facility at a call on one’s doorstep, Fazilka has been divided into five zones. Each zone has a separate centre which would cater to the transportation needs of the public. The telephone numbers are:


Fazilka Central (Gaushala Road) 510081
Fazilka 510061
Fazilka West (Vaan Bazaar) 510071
Fazilka North (Main Bus Stand) 510041
Fazilka South (Multani Chungi) 510051



* Fazilka STD Code - 01638






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जल्दी ही फाजिल्का बोर्डर भी खुलवाया जायेगा



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Monday 1 August 2011

क्या खोया है, क्या पाया है आज तुम्हें बतलाते हैं

क्या खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते हैं
आओ साथियों, देशवासियो
भारत तुम्हें दिखाते हैं ॥
जिस गौ को गौमाता कहकर
गाँधी सेवा करते थे
जिसके उर में सभी देवता
वास हमेशा करते थे
हिन्द भले ही मुक्त हुआ हो
गौमाता बेहाल अभी
कटती गऊएँ किसे पुकारें
उनके सर है काल अभी
गौमाता की शोणित-बूँदें
जब धरती पर गिरती हैं
तब आज़ादी की व्याख्याएँ
ज्यों आरी से चिरती हैं
गौ भारत का जीवन-धन है
हिन्दू चिन्तन की धारा
गौमाता को जो काटे, वह
है माता का हत्यारा
कृष्ण कन्हैया की गऊओं की
गाथा करुण सुनाते हैं
कया खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते हैं ॥
हिन्द देश की भाषा हिन्दी
संविधान में माता है
मैकाले की अँग्रेजी से
भारत जाना जाता हैं
राजघाट से राजपाट तक
अँग्रेजी की धूम बड़ी
औ’ हिन्दी, झोपड़-पटटी में
कैसी है मजबूर खड़ी
न्यायालय से अस्पताल तक
भाषा अब अँग्रेजी है
हिन्दी संविधान में बन्दी
रानी अब अँग्रेजी है
मन्त्री जी से सन्त्री जी तक
बोलें सब अँग्रेजी में
हर काँलिज, हर विद्यालय में
डोंलें सब अँग्रेजी में
अपनी भाषा हिन्दी से हम
क्यों इतना कतराते हैं
क्या खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है। भारत में ही नहीं,विश्वभर में संघ
के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में लद्दाख से लेकर अंडमान निकोबार तक नियमित
शाखायें हैं तथा वर्ष भर विभिन्न तरह केकार्यक्रम चलते रहते हैं। स्वयंसेवकों
द्वारा समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए, उनमें आत्मविश्वास व राष्ट्रीय भाव
निर्माण करने हेतु डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। संघ के अनेक स्वयंसेवक
समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समाज के विभिन्न बंधुओं से सहयोग से अनेक संगठन
चला रहे हैं। राष्ट्र व समाज पर आने वाली हर विपदा में स्वयंसेवकों द्वारा सेवा के
कीर्तिमान खडे किये गये हैं। संघ से बाहर के लोगों यहां तक कि विरोध करने वालों ने
भी समयसमय पर इन सेवा कार्यों की भूरिभूरि प्रशंसा की है। नित्य राष्ट्र साधना
(प्रतिदिन की शाखा) व समयसमय पर किये गये कार्यों व व्यक्त विचारों के कारण ही
दुनिया की नजर में संघ राष्ट्रशक्ति बनकर उभरा है। ऐसे संगठन के बारे में तथ्यपूर्ण
सही जानकारी होना आवश्यक है। रा. स्व. संघ का जन्म सं. 1982 विक्रमी (सन 1925) की
विजयादशमी को हुआ। संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार थे। डॉ. हेडगेवार
के बारे में कहा जा सकता है कि वे जन्मजात देशभक्त थे। छोटी आयु में ही रानी
विक्टोरिया के जन्मदिन पर स्कूल से मिलने वाला मिठाई का दोना उन्होंने कूडे में
फेंक दिया था। भाई द्वारा पूछने पर उत्तर दिया "हम पर जबर्दस्ती राज्य करने वाली
रानी का जन्मदिन हम क्यों मनायें?’’ ऐसी अनेक घटनाओं से उनका जीवन भरा पड़ा है। इस
वृत्ति के कारण जैसेजैसे वे बड़े हुए राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ते गये। वंदेमातरम कहने
पर स्कूल से निकाल दिये गये। बाद में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में इसलिए पढ़ने गये कि
उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। वहां रहकर अनेक
प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ काम किया। लौटकर उस समय के प्रमुख नेताओं के साथ
आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे। 192 के नागपुर अधिवेशन की संपूर्ण व्यवस्थायें
संभालते हुए पूर्ण स्वराज्य की मांग का आग्रह डॉ. साहब ने कांग्रेस नेताओं से किया।
उनकी बात तब अस्वीकार कर दी गयी। बाद में 1929 के लाहौर अधिवेशन में जब कांग्रेस ने
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने उस समय चलने वाली सभी
संघ शाखाओं से धन्यवाद का पत्र लिखवाया, क्योंकि उनके मन में आजादी की कल्पना पूर्ण
स्वराज्य के रूप में ही थी।
आजादी के आंदोलन में डॉ. हेडगेवार स्वयं दो बार जेल
गये। उनके साथ और भी अनेकों स्वयंसेवक जेल गये। फिर भी आज तक यह झूठा प्रश्न
उपस्थित किया जाता है कि आजादी के आंदोलन में संघ कहां था? डॉ. हेडगेवार को देश की
परतंत्रता अत्यंत पीडा देती थी। इसीलिए उस समय स्वयंसेवकों द्वारा ली जाने वाली
प्रतिज्ञा में यह शब्द बोले जाते थे॔ "देश को आजाद कराने के लिए मै संघ का
स्वयंसेवक बना हूं’’ डॉ. साहब को दूसरी सबसे बडी पीडा यह थी कि इस देश का सबसे
प्रचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य प्रायरू आत्म विस्मृति
में डूबा हुआ है, उसको “मैं अकेला क्या कर सकता हूं’’ की भावना ने ग्रसित कर लिया
है। इस देश का बहुसंख्यक समाज यदि इस दशा में रहा तो कैसे यह देश खडा होगा? इतिहास
गवाह है कि जबजब यह बिखरा रहा तबतब देश पराजित हुआ है। इसी सोच में से जन्मा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि
इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीया स्वाभिमान, निरूस्वार्थ भावना व एकजुटता का
भाव निर्माण करना बना। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित ही है कि डॉ. हेडगेवार का यह
विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की
प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं खडा हुआ। अतरू इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या
ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरूद्घ हो जायेगा।

हिन्दू संगठन
शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं उन्हें संघ समझना कठिन
ही होगा। तब उनके द्वारा संघ जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संगठन को, राष्ट्र के लिए
समर्पित संगठन को संकुचित, सांप्रदायिक आदि शब्द प्रयोग आश्चर्यजनक नहीं है। हिन्दू
के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनियां के सभी मतपंथों को भारत में
प्रवेश व प्रश्रय मिला। वे यहां आये, बसे। कुछ मत यहां की संस्कृति में रचबस गये
तथा कुछ अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ रहे। हिन्दू ने यह भी स्वीकार कर लिया
क्योंकि उसके मन में बैठाया गया है "रुचीनां वैचित्र्याद्जुकुटिलनानापथजुषाम्।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामपर्णव इव॥" अर्थ "जैसे विभिन्न नदियां भिन्नभिन्न
स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्नभिन्न रुचि
के अनुसार विभिन्न टे़मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें
(परमपिता परमेश्वर) आकर मिलते है।" शिव महिमा स्त्रोत्तम, इस तरह भारत में अनेक
मतपंथों के लोग रहने लगे। इसी स्थिति को कुछ लोग बहुलतावादी संस्कृति की संज्ञा
देते हैं तथा केवल हिन्दू की बात को छोटा व संकीर्ण मानते हैं। वे यह भूल जाते हैं
कि भारत में सभी पंथों का सहज रहना यहां के प्राचीन समाज (हिन्दू) के स्वभाव के
कारण है।
उस हिन्दुत्व के कारण है जिसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी जीवन
पद्घति कहा है, केवल पूजा पद्घति नहीं।हिन्दू के इस स्वभाव के कारण ही देश
बहुलतावादी है। यहां विचार करने का विषय है कि बहुलतावाद महत्वपूर्ण है या
हिन्दुत्व महत्वपूर्ण है जिसके कारण बहुलतावाद चल रहा है। अत: देश में जो लोग
बहुलतावाद के समर्थक हैं उन्हें भी हिन्दुत्व के विचार को प्रबल बनाने की सोचना
होगा। यहां हिन्दुत्व के अतिरिक्त कुछ भी प्रबल हुआ तो न तो भारत रह सकेगा न ही
बहुलतावाद जैसे सिद्घांत रह सकेंगे।

भारत माता कि जय

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बिजली सप्लाई न मिलने से सूख रही है धान की फसल

मौसम की मार के साथ गांवों में किसानों को बिजली की पर्याप्त सप्लाई न मिलने से धान की फसल सूखने के कगार पर है। इस बारे में किसान संगठन खुईखेड़ा सबस्टेशन का घेराव भी कर चुके हैं। इसके अलावा कई गांवों में नारेबाजी हो चुकी है।
इसके बावजूद किसानों को पूरी बिजली सप्लाई नहीं मिल रही। यह हालात गांव पैंचावाली, तुरका वाली, जोड़की कंकरवाली, लालोवाली, अभून, चक्क बनवाला, चक्क डबवाला, चुवाडिय़ावाली, किक्करवाला रूपा, सजराना, बेगांवाली, टाहलीवाला, सिंहपुरा, चाहलावाली, चांदमारी, फरवावाली, पक्का चिश्ती, मौजम, सलेमशाह, गंजूआना आदि में है, जहां फसलें सूखने लगी है।
डीजल फूंकने लगे किसान : किसानों मोहन लाल पूर्व सरपंच, झंडा राम, कश्मीर चंद, टाहला राम, देस राज, लेख राज, दर्शन लाल, गुलाब राम, पुनू राम, सतनाम चंद, बलराम, गोपी राम, सरवन कुमार, बलराज सिंह, हमराज सिंह, दविन्द्र सिंह, राम चंद, किशोर चंद, मदन लाल आदि ने बताया कि इस बार बारिश नहीं हुई है। पावर कॉम की ओर से आठ घंटे की बजाए कई जगह 3-4 घंटे बिजली सप्लाई दी जा रही है। इस पर भी कई बार बिजली कट लगाए जा रहे हैं। फसलों को पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल रहा। जिस कारण उन्हें डीजल फूंककर अधिक खर्च करना पड़ रहा है।


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शहीदों के बताए रास्ते पर चलने का लिया प्रण

नगर के भाजपा कार्यकर्ताओं एवं अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा शहीद ऊधम सिंह पार्क में रविवार को शहीद ऊधम सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
श्रद्धांजलि देने वालों में नगर सुधार ट्रस्ट के चेयरमैन एडवोकेट महेंद्र प्रताप धींगड़ा, नगर कौंसिल अध्यक्ष अनिल सेठी, अकाली नेता आत्मा राम कंबोज, प्रवीण धंजू, जंग शेर बहादुर विज, मिंटा शर्मा, अमर चेतीवाल, विष्णु दत्त शर्मा, कंचन शर्मा, हंसराज तिन्ना, लीलाधर शर्मा, संदीप धींगड़ा, ओम प्रकाश बलाना, शिवा, विकास, सुखजीत कुमार, शिवनाथ मक्कड़, रजत कवातड़ा, राज कुमार, बाबा भूमण शाह वेलफेयर सोसायटी के डा. लेख राज कंबोज, तर्कशील सोसायटी इकाई अध्यक्ष सुरिन्द्र गंजूआना, कामरेड बाग चंद आदि
शामिल थे। इस मौके पर विभिन्न नेताओं ने शहीद के बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। भास्कर न्यूज & फाजिल्का
शहीद ऊधम सिंह यूथ क्लब की ओर से ग्राम पंचायत गांव चाननवाला के सहयोग से शहीदी दिवस को समर्पित रक्तदान कैंप लगाया गया। कैंप की शुरुआत क्लब के अध्यक्ष बलविंद्र सिंह और सरपंच जगदीश कुमार ने की।
इस मौके पर शहीद भगत सिंह यूथ क्लब पक्का चिश्ती का विशेष सहयोग रहा। इस अवसर पर सिविल अस्पताल के डा. रेणू धूडिय़ा, ब्लड बैंक के इंचार्ज डा. बलवीर सिंह, रंजू आदि पहुंचे। कैंप में 30 यूनिट रक्तदान किया गया। कैंप में अध्यक्ष बलविंद्र सिंह, सरपंच जगदीश कुमार, ब्लाक समिति सदस्य प्रदीप कुमार, प्रधान इंकलाब गिल पक्का चिश्ती, सचिव जसप्रीत गिल, चेयरमैन बलवंत राम, प्रेस सचिव खजान सिंह, सलविंद्र सिंह बब्बू, राकेश सिंह, पप्पू सिंह, बलदेव सिंह, रेशम सिंह, सावन सिंह, मंगल सिंह, सुरजीत कुमार, इकबाल सिंह, बलकार सिंह, प्रेम सिंह, काला सिंह, बलविंद्र कुमार, संदीप सिंह हाजिर थे। भास्कर न्यूज & जलालाबाद
आल इंप्लाइज कोआर्डिनेटर कमेटी जलालाबाद की ओर से शहीद ऊधम सिंह का शहीदी दिवस मनाया गया। रविवार सुबह सबसे पहले विभिन्न संगठनों की ओर से शहीद ऊधम सिंह के प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए गए। शहीदों के दिखाए मार्ग पर चलने का प्रण लिया गया। देश को आजादी दिलाने के लिए देशभक्तों
ने हसते हुए मौत को गले से लगा
लिया। शहीद ऊधम सिंह के शहीदी दिवस पर कई जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस अवसर पर आल इंप्लाइज कोआर्डिनेटर कमेटी अध्यक्ष बलवीर सिंह काठगड़, सोहन दीप थिंद, पवन अरोड़ा, बलवीर पुआर, पवन अरोड़ा, चंद्रप्रकाश मदान, केवल कृष्ण सुल्ला, इकबाल चंद जोसन, प्रेम प्रकाश पटवारी, साधू सिंह पटवारी, कृष्ण बलदेव, जगनंदन सिंह, सतनाम सिंह फलियांवाला, जसवंत सिंह सेखड़ा, राज कुमार बूंगी आदि ने पुष्पों के हाल डाल कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

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फिर से मंदी का खतरा


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.... तो मिटा कर रख देंगे पाक को


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